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आजमगढ़ 20 दिसम्बर। इन दिनों जिला चिकित्सालय स्थित ट्रामा सेन्टर में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है।



आजमगढ़ 20 दिसम्बर। इन दिनों जिला चिकित्सालय स्थित ट्रामा सेन्टर में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। 




वैसे तो इस ट्रामा सेन्टर में ज्यादातर गरीब व असहाय मरीज ही आते हैं, जिन्हें इलाज के नाम पर आर्थो सर्जन द्वारा निचोड़ लिया जाता है। मुख्य चिकित्साधिकारी का कहना है कि अस्पताल में दोनों आपरेशन थियेटरों में चिकित्सा उपकरण पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है और किसी भी मरीज को बाहर से उपकरण आदि खरीदने के लिए नहीं कहा जाता है। फिर भी ट्रामा सेन्टर के आपरेशन थियेटर में आर्थो सर्जन द्वारा मरीजों से यह कहा जाता है कि एक भी उपकरण उपलब्ध नहीं है, इसलिए बाहर से खरीदना पड़ेगा, तभी जाकर आपरेशन हो पायेगा। उक्त आर्थों सर्जन का निवास भी अस्पताल कैम्पस में ही है, जहाँ उनके दो दलाल घरेलू नौकर के रूप में लगे हुये हैं। डाक्टर ओपीडी में न बैठकर अपने आवास पर ही मरीजों को देखते हैं। जिन मरीजों को हड्‌डी सम्बन्धी आपरेशन की जरूरत होती है, उन्हें आर्थो सर्जन कहते हैं कि उपकरण की व्यवस्था कराओ तो आपरेशन मुफ्त में कर देगें एक रूपया नहीं लगेगा। इसके बाद उनके दलाल उक्त मरीज की सहायता में जुट जाते हैं और फोन करके हास्पीटल के ठीक सामने स्थित एक चर्चित मेडिकल हाल संचालक को बुला लेते हैं। उक्त मेडिकल हाल संचालक मरीज से 15 से 20 हजार तक की डिमाण्ड करता है और उसी में कम-बेशी करके मामला तंय हो जाता है। इस प्रकार मेडिकल हाल वाला मरीज से पूरे रूपये लेकर उपकरण हास्पीटल में पहुँचाता है, तब जाकर उक्त मरीज का आपरेशन करने उक्त आर्थो सर्जन ट्रामा सेन्टर में जाते हैं। देखने में लगता है कि हजार पाँच सौ के उपकरण 15-20 हजार में देकर मेडिकल हाल संचालक अकेले ही काली कमाई कर रहा है, परन्तु मामला बिल्कुल उल्टा है। उक्त मेडिकल हाल संचालक उसी हास्पीटल का उपकरण पहले से प्राप्त करके अपने पास रखा हुआ है और जब डाक्टर के दलाल मरीज सेट कर देते हैं तो वही उपकरण वह मरीज से 15-20 हजार रूपये लेकर हास्पीटल में पहुँचा देता है। इसके बाद आर्थों सर्जन व उनके दलालों को उक्त मेडिकल हाल संचालक उन्हीं रूपयों में से उनका हिस्सा दे देता है, और अपना हिस्सा ले लेता है। इसी कारण गरीब मरीजों का रूपये के अभाव में उक्त दलालों से सेटिंग नहीं हो पाती है और उनका आपरेशन नहीं हो पाता है।


बताया जाता है कि उक्त चर्चित मेडिकल हाल संचालक इसके पूर्व हास्पीटल में अवैध ढंग से ब्लड सप्लाई करते हुये रंगे हाथ पकड़ा जा चुका है और उसके विरूद्ध एफआईआर दर्ज हुयी थी, जिसमें वह छः माह तक जेल में भी रहा है। मुख्य चिकित्साधिकारी एवं डाक्टरों का कहना है कि किसी भी मरीज से कोई रिश्वत नहीं ली जा रही है, परन्तु यह सब सारा खेल डाक्टरों के दलालों के माध्यम से हो रहा है, जिसमें प्राइवेट मेडिकल हाल संचालक खूब काली कमाई कर रहे हैं। इस प्रकार पूरे हास्पीटल में सरकार की जीरो टालरेन्ट की नीति का पालन करने का दिखावा किया जा रहा है, जबकि मरीजों को उपकरण एवं दवा प्राइवेट मेडिकल हाल से खरीदने के लिये मजबूर किया जाता है। प्रशासन भी सब कुछ जानते हुये मौन है. इससे आम लोगों में सरकार की छवि खराब हो रही है।









संतोष यादव संवादाता 

सहारा अब तक न्यूज़ इंडिया,


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